सलेमपुर के पिपरा नाजिर में श्रीमद् भागवत कथा का आज चौथा दिन

सलेमपुर के पिपरा नाजिर में चौथे दिन के श्रीमद्भागवत कथा में कथावाचक राघवेंद्र शास्त्री जी ने कहा कि सिर्फ भक्ति से ही भगवान को प्राप्त किया जा सकता है।भक्ति करने के लिये उम्र की कोई सीमा नही है।मात्र पांच वर्ष की उम्र में ध्रुव भक्ति करने भगवान की शरण मे चले गये।
रिपोर्ट ज्ञानेंद्र मिश्रा
शास्त्री जी बताया कि
महाराज उत्तानपाद की दो रानियाँ थी, उनकी बड़ी रानी का नाम सुनीति तथा छोटी रानी का नाम सुरुचि था। सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नाम के पुत्र पैदा हुए। महाराज उत्तानपाद अपनी छोटी रानी सुरुचि से अधिक प्रेम करते थे और सुनीति प्राय: उपेक्षित रहती थी।
इसलिए वह सांसारिकता से विरक्त होकर अपना अधिक से अधिक समय भगवान के भजन पूजन में व्यतीत करती थी। एक दिन बड़ी रानी का पुत्र ध्रुव अपने पिता महाराज उत्तानपाद की गोद में बैठ गया। यह देख सुरुचि उसे खींचते हुए गोद से उतार देती है और फटकारते हुए कहती है – ‘यह गोद और राजा का सिंहासन मेरे पुत्र उत्तम का है। तुम्हें यह पद प्राप्त करने के लिए भगवान की आराधना करके मेरे गर्भ से उत्पन्न होना पड़ेगा।’
ध्रुव सुरुचि के इस व्यवहार से अत्यन्त दु:खी होकर रोते हुए अपनी माँ सुनीति के पास आते हैं और सब बात कह सुनाते हैं। अपनी सौत के व्यवहार के विषय में जानकर सुनीति के मन में भी अत्यधिक पीड़ा होती है। वह ध्रुव को समझाते हुए कहती है – ‘पुत्र ! तुम्हारी विमाता ने क्रोध के आवेश में भी ठीक ही कहा है। भगवान ही तुम्हें पिता का सिंहासन अथवा उससे भी श्रेष्ठ पद देने में समर्थ हैं। अत: तुम्हें उनकी ही आराधना करनी चाहिए।’
माता के वचनों पर विश्वास करके पाँच वर्ष का बालक ध्रुव वन की ओर चल पड़ा। मार्ग में उसे देवर्षि नारद मिले। उन्होंने ध्रुव को अनेक प्रकार से समझाकर घर लौटाने का प्रयास किया किंतु वे उसे वापस भेजने में असफल रहे। उक्त अवसर पर यजमान रामप्रीत गुप्ता,अजय दुबे वत्स,अभिषेक जायसवाल,अशोक तिवारी,पुनीत यादव,राकेश दुबे,बचनदेव गोंड़, मुकेश,राजेश,मोहन,अंकित,श्यामसुंदर, राहुल गुप्ता,विनय,अजित आदि श्रोता उपस्थित रहे।