सावन का झूला

सावन का झूला
कविता लेखक दिव्या बाजपेई
रिपोर्ट दिव्या बाजपेई
बादलों की घटा देख सावन की याद आती है
काले घनेरे बादलों में बरसात की बूंदों की याद आती है
आती है याद झूले की झूलने की याद आ जाती है
सावन के महीने में झूले की याद आती है
बरसात की फुआर पढ़ते ही बस मानो याद आ जाती है
सावन के महीने में झूले की याद आती है
गांव के बच्चे भी झूला झूलने को आतुर होते हैं
झूला पढ़ते ही झूलने की याद आ जाती है
बच्चों के संग मैं भी झूलती झूले को देख मैं भी खुश हो जाती हूं
झूला झूल खुशी हो जाती बस खुशी के साथ मैं खुश हो जाती हूं
झूला देख झूलने को ना मिले कोने में बैठ दुखी हो जाती हूं
झूलने को कोई मुझसे कह दे खुश प्रसन्न हो जाती हूं
सावन के महीने में झूले की याद आती है
बादलों की गड़गड़ाहट सुन झूले से चट उतर जाती हूं
सावन में हो बरसात बस झूले की याद आती है
पानी बरसे झूला झूले इतनी खुशी आ जाती है
सावन के महीने में झूले की याद आती है