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कौओं को पितरों का प्रतीक कहा जाता है

      <strong>प्रिंस श्रीवास्तव</strong>


कन्नौज। पितरों को संतुष्ट करने के लिए श्राद्ध कर्म की व्यवस्था की गई है। श्राद्ध करने के लिए समर्पण और श्रद्धा का होना जरूरी है। श्राद्ध पक्ष को पितृ पक्ष भी बोला जाता है। भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर अश्विन मास की अमावस्या तक ये दिन ​हमारे पितरों को समर्पित होते हैं। परम्परा है कि इस के चलते हमारे पूर्वज पितृलोक से पृथ्वी लोक पर आते हैं। पितृ पक्ष के चलते कौए की महत्त्ता बहुत बढ़ जाती है। कौओं को पितरों का प्रतीक कहा जाता है तथा उनको ग्रास देने की प्रथा है। परम्परा है कि अगर इस बीच कौआ आपका ग्रास चख ले तो वो सीधा पितरों को मिलता है।
इसे पितरों की ख़ुशी तथा सं​तुष्टि का संकेत माना जाता है। इसके अतिरिक्त भी पितृ पक्ष के चलते कुछ ऐसे संकेत प्राप्त होते हैं, जिन्हें बहुत शुभ माना जाता है।
सनातन संस्कृति एवं वेदों में पितरों को भगवान विष्णु का अंश कहा गया है। गरुण पुराण में पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए चार कर्म बताये गये हैं। पहला ब्रह्मज्ञान, दूसरा गया में श्राद्ध तीसरा कुरुक्षेत्र में निवास और चौथा गौशाला में मृत्यु। गया तीर्थ में किये श्राद्ध को भारतीय संस्कृति में अधिक महत्व दिया गया है। श्राद्ध के लिए श्रद्धा का होना बहुत जरूरी है। अगर श्रद्धापूर्वक पूर्वजों को तृप्त किया जाये तो परिवार से पितृ दोष समाप्त होता है। पितृ पक्ष में पुत्र का धर्म है कि अपने पूर्वजों को नित्य जलदान करे और श्राद्ध करे। ऐसा कहा जाता है कि कुंवार मास में कृष्ण पक्ष में यमराज पितृ लोक में भ्रमण करने आते हैं और इस काल मे पितृ जन अपने परिजनों के यहां आ जाते हैं।
मांगलिक कार्यों में भी पितरों का आह्वान करके उन्हें स्थापित किया जाता है और मांगलिक कार्यक्रम सम्पन्न हो जाने पर उनका विसर्जन भी किया जाता है।

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