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मानव की सेवा माधव भगवान की सेवा किस समतुल्य आचार्य अनूप द्विवेदी

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मानव की सेवा माधव भगवान की सेवा किस समतुल्य आचार्य अनूप द्विवेदी

रिपोर्ट सुमित मिश्रा

भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है सनातन धर्म धर्म में तो सेवा को धर्म का सार बताया गया है प्राणी मात्र तगत की सेवा का भाव ही सनातन धर्म की पूजा सेवा की कई श्रेष्ठ रूप मानव की सेवा समतुल्य मानी गई है मानव समाज के भीतर सेवा का भाव होना परम आवश्यक है सेवा भाव से जहां समाज में जुड़ने का मौका मिलता है और भगवान से भी सेवा भाव का किसी भी व्यक्ति के लिए आत्म संतुष्टि का कारण ही नहीं बनता वरुण वह है दूसरों के लिए एक आदर्श के रूम में भी स्थापित होता है सेवा का महत्व सुंदर से अधिक है सुंदर सिर्फ भौतिक रूप से मुक्त कर सकता है परंतु आत्मा को वास्तविक आनंद की प्राप्ति तो सेवा से ही संभव हो सकती है इसी संदर्भ में गोस्वामी तुलसीदास जी ने बहुत ही सुंदर पंक्ति लिखी है परहित सरिस धर्म नहीं भाई अर्थात दूसरों की भलाई से बढ़कर कोई भी धर्म नहीं है हम अपने घर पर ऐसा कार करें जिस से आने वाली पीढ़ी में बच्चे भी देख कर सेवा भाव का संस्कार उत्पन्न हो सके आज आचार्य अनूप द्विवेदी द्वारा बड़ी ही सुंदर कथा का वर्णन किया गया

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