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जनता के हित में न्यायालय द्वारा स्पष्ट, सटीक , संक्षिप्त और आसान फैसले लिखे जाए : सुप्रीमकोर्ट

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जनता के हित में न्यायालय द्वारा स्पष्ट, सटीक , संक्षिप्त और आसान फैसले लिखे जाए : सुप्रीमकोर्ट_*

प्रतापसिंह


सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि अगर उसके फैसले अधिक स्पष्ट और सटीक होंगे तो आम आदमी को उसे समझने में दिक्कत नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट की तीन जज की बेंच ने गुरुवार को कहा कि यह उचित समय है कि जजों को अदालत के फैसलों को समझने में आसान बनाने के लिए रेन एंड मार्टिन के नियमों को अपनाना चाहिए. जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने कहा, ‘स्पष्ट और संक्षिप्त निर्णय लिखना समय की मांग है जिसे वादी समझ सकें. हमारा मानना है कि फैसले अधिक जटिल और शब्दों के जाल में फंसते जा रहे हैं.’ बेंच ने यह टिप्पणी फेसबुक के वीपी अजित मोहन की याचिका खारिज करने वाले फैसले के पोस्टस्क्रिप्ट (परिशिष्ट) में की.

छह पन्नों की पोस्टस्क्रिप्ट को तीन जजों ने फैसले में जोड़ा था. इसके जरिए अदालती फैसलों की समझ को आम आदमी के लिए भी आसान बनाने की कोशिश की गई थी. पोस्टस्क्रिप्ट में कहा गया- ‘हमारी पोस्टस्क्रिप्ट का उद्देश्य केवल कानूनी रूप से तैयार किए गए लिखे गए सारांश के महत्व को लोगों के ध्यान में लाना है साथ ही कानूनी बिरादरी के बीच एक चर्चा शुरू करना है. मौखिक तर्कों के दौरान भी ऐसा ही किया जा रहा है जिसे और अधिक स्पष्ट बनाने की जरूरत है ताकि आम आदमी समझ सके कि क्या हो रहा है. आखिरकार यह न्यायिक प्रणाली ‘आम आदमी’ के लिए है.’

अभी करीब 69 हजार केस पेंडिंग
बेंच ने कहा कि वकील समय के भीतर तर्क और उससे संबंधित कानूनों की संक्षिप्त जानकारी देकर समान जिम्मेदारी साझा करते हैं. मौखिक तर्कों को प्रतिबंधित करने के बजाय यह (अदालत) कंपटीशन की जगह बन गया है जहां सबसे लंबे समय तक बहस होती है.’

हाल के दिनों में, सुप्रीम कोर्ट ने हजार पन्नों में लिखे आदेश दिए हैं. जैसे सितंबर 2018 में 1448 पन्नों के साथ आधार कार्ड को वैध घोषित करने का निर्णय, नवंबर 2019 में का अयोध्या जमीन विवाद 1045 पेज, अगस्त 2017 में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने वाले न्यायालय के फैसले में 547 पन्ने थे, वहीं सितंबर 2018 में समलैंगिक सेक्स को अपराध से मुक्त करने का फैसला 495 पन्नों में था. फिलहाल शीर्ष अदालत में 2 जुलाई, 2021 तक 69,212 मामले पेंडिंग हैं जिनमें से 447 मामले पांच, सात और नौ जजों की संवैधानिक पीठ के समक्ष हैं।

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