हत्या सरीखे अपराधों में प्रयुक्त वाहनों पर मोटर कानून के तहत क्षतिपूर्ति नही : उच्च न्यायालय

हत्या सरीखे अपराधों में प्रयुक्त वाहनों पर मोटर कानून के तहत क्षतिपूर्ति नही : उच्च न्यायालय*
हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि किसी हत्या का मामला हो और उस स्थिति में वाहन का उपयोग हथियार की तरह किया गया है तो क्षतिपूर्ति राशि नहीं दी जा सकती। ऐसे ही हत्या के एक प्रकरण में युगलपीठ ने बीमा कंपनी की अपील को स्वीकार करते हुए उक्त आदेश दिया है।
रायपुर जिला निवासी संतराम धु्रव वाहन चालक है। 20 अक्टूबर 2008 की रात उसने अपने वाहन क्रमांक सीजी 07/ 1169 से दो लोगों को कुचल दिया था, जिससे अशोक सोलंकी व उसके दोस्त रामसेवक की मौत हो गई थी। इस मामले में पुलिस ने धारा 302 के तहत अपराध दर्ज किया और आरोपित चालक को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। बाद में मृतक अशोक की पत्नी राही सोलंकी व रामसेवक के स्वजनों ने मोटर व्हीकल एक्ट के तहत मोटरदावा दुर्घटना दावा के लिए वाद प्रस्तुत किया।
इस पर कोर्ट ने यूनाइटेड इंडिया बीमा कंपनी को चार लाख 24 हजार रुपये क्षतिपूर्ति मृतक के स्वजनों को अदा करने का आदेश दिया। इस फैसले के खिलाफ बीमा कंपनी ने हाई कोर्ट में अपील की। इस दौरान तर्क दिया गया कि यह प्रकरण दुर्घटना नहीं, बल्कि हत्या है। बीमा कंपनी को दुर्घटना के प्रकरणों में क्षतिपूर्ति देने का प्रावधान है।
हत्या के मामले में बीमा कंपनी क्षतिपूर्ति नहीं दे सकती। प्रकरण की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस पीआर रामचंद्र मेनन की युगलपीठ ने बीमा कंपनी के वकील के तर्कों को स्वीकार किया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जब मामला हत्या का हो और वाहन का उपयोग हथियार के रूप में किया गया हो तो क्षतिपूर्ति नहीं दी जा सकती। हाई कोर्ट ने इस आदेश के साथ ही मोटर दावा अधिकरण के आदेश को रद्द कर दिया है।