भ्रष्टाचार के खिलाफ उठी एक गंभीर आवाज
की यह खास रिपोर्ट उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था और भ्रष्टाचार के खिलाफ उठती एक गंभीर आवाज़ पर आधारित है।
माननीय ओजस्वी मुख्यमंत्री जी उत्तर प्रदेश के नाम
“एण्टी करप्शन कोर (ACC)” ने एक खुला पत्र लिखा है,
जो शासन की नीतियों और ज़मीनी हकीकत के बीच की खाई को उजागर करता है।
रिपोर्ट के अनुसार—
सरकार की जनकल्याणकारी योजनाएँ तहसील, ब्लॉक और थाना जैसे निचले स्तरों से होकर आम जनता तक पहुँचती हैं,
लेकिन हकीकत यह है कि यही व्यवस्थाएँ अक्सर जनता को न्याय और लाभ दिलाने में विफल साबित हो रही हैं।
तहसील स्तर पर
न तो अधिकारी समय पर न्याय दे पा रहे हैं,
और न ही मुकदमों का निस्तारण हो पा रहा है।
ब्लॉक स्तर पर स्थिति और भी चिंताजनक है।
आरोप है कि अधिकारी क्षेत्र में जाने की ज़रूरत ही नहीं समझते,
क्योंकि कार्यालय में ही “राजा” यानी ग्राम प्रधान सब कुछ लेकर उपस्थित रहते हैं।
नतीजा—
अपात्र योजनाओं का लाभ पा जाते हैं,
और पात्र व्यक्ति दर-दर भटकने को मजबूर हो जाता है।
अब बात करें थानों की—
तो तस्वीर और भी गंभीर है।
आरोप है कि बिना “प्रसाद-चढ़ावे” के
पीड़ित की सुनवाई नहीं होती।
जनता दौड़ती रहती है,
और न्याय दरवाज़े के बाहर ही दम तोड़ देता है।
ऐसे में पीड़ित जनता आख़िरी उम्मीद लेकर पहुँचती है
मुख्यमंत्री जनता दर्शन में।
माननीय मुख्यमंत्री जी संवेदनशीलता के साथ
शिकायत संबंधित उच्च अधिकारी को सौंपते हैं,
लेकिन दुर्भाग्य यह कि
वही शिकायत घूम-फिर कर
फिर उसी अधिकारी के पास पहुँच जाती है
जिससे पीड़ित पहले ही निराश हो चुका होता है।
अब सवाल उठता है—
क्या वही अधिकारी पीड़ित को न्याय देगा,
जिससे बचने के लिए वह मुख्यमंत्री तक पहुँचा था?
इसी गंभीर सवाल के साथ
एण्टी करप्शन कोर (ACC) ने मुख्यमंत्री जी से मांग की है कि—
जनता दर्शन, तहसील दिवस और थाना समाधान दिवस में दिए गए आवेदनों की
निष्पक्ष समीक्षा के लिए एक स्वतंत्र संस्था को अधिकृत किया जाए,
जो मौके पर जाकर भौतिक सत्यापन करे
और वास्तविक रिपोर्ट सीधे मुख्यमंत्री तक पहुँचाए।
ताकि
भ्रष्ट अधिकारियों की पहचान हो सके,
उन पर कठोर कार्रवाई हो
और उत्तर प्रदेश शासन की छवि
वास्तविक अर्थों में सुशासन के रूप में स्थापित हो सके।
बड़ा सवाल यही है—
क्या इस खुली चिट्ठी के बाद
ज़मीनी व्यवस्था में कोई बदलाव आएगा?