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यह तकरार है या कोई और कारण ???

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2022 आगामी यूपी विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर अखिलेश यादव-जयंत चौधरी के बीच तकरार है, या फिर इस दूरी का कोई और कारण है लखनऊ: आगामी यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए समाजवादी पार्टी और रालोद के बीच गठबंधन कहीं मोदी की किसान कानून वापसी की गुगली की भेंट तो नहीं चढ गया है? जैसे ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के बीच मुलायम सिंह यादव के जन्मदिवस 22 नवंबर से एक दिन पहले 21 नवंबर यानि आज होने वाली ज्वाइंट प्रेस कॉन्फेंस के टलने की खबर सामने आई इसे पीएम नरेन्द्र मोदी के किसान कानून वापसी के मास्टर स्ट्रोक का पहला प्रहार माना गया. सियासी गलियारों में यह चर्चा है कि जब दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन होने की बात पिछले काफी समय से ठीक ठाक चल रही थी, तो फिर अचानक क्या कारण हुआ कि यह जुगलबंदी गडबडाने लगी. इसकी ज्यादा गहराई में न जाते हुए तात्कालिक कारण पर जाएं तो कृषि कानूनों के वापस लेने के ऐलान दोनों नेताओं की इस चर्चा में अवरोध का कारण माना जा सकता है.ठिठके हुए है रालोद नेता जयंत
पंजाब जैसे किसी राज्य में तो किसान इस घोषणा के बावजूद अपना आंदोलन जारी रखने और एमएसपी पर संवैधानिक गारंटी जैसे मुद्दों के साथ बीजेपी के विरुद्ध खड़े रहने के बहाने ढूंढ सकते हैं. पर यूपी और खासकर पश्चिम यूपी में किसानों का रुख ऐसा नहीं है.

वहां के समीकरण बदले नजर आ रहे हैं.

यूपी के इस इलाके में किसानों के सबसे बडे वर्ग जाट समुदाय के मतदाता परंपरागत रूप से भाजपा विरोधी नहीं हैं.

कृषि कानून भाजपा से नाराजगी का एक कारण थे, उस कारण को हटाने से भाजपा का नुकसान कम हो सकता है. रालोद ने इस बात को बहुत जल्दी भांप लिया और इस स्थिति से ठिठके उसके नेता जयंत अपनी रणनीति को दुरुस्त करने और अपने पांसे सेट करने को थोडा सा समय चाहते हैं.

सपा-रालोद की रणनीति बिखर सी गई


पश्चिम यूपी में ही रालोद का प्रभाव है और यहां खेती के काम में संलग्न जाट फिर से आरएलडी के साथ खडे थे, पिछले पंचायत चुनावों में जिला पंचायत सदस्यों में सपा और आरलएडी को यहां खासी जीत मिली थी. रालोद के प्रभाव के इस इलाके में जाट-मुस्लिम दो बडे वोट बैंक हैं. 2013 से पहले जाट राष्ट्रीय लोकदल के लॉयल वोट बैंक थे, पर 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाट-मुस्लिम में आपस में बिखराव आया था. इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला.

हालिया किसान आंदोलन के बाद से स्थितियां बदलीं और किसान मुद्दे पर जाट-मुस्लिम एकता का समीकरण फिर बन गया था, जो राजनैतिक दृष्टि से बीजेपी के विपक्षी दलों आरएलडी, सपा के हक में था. भाजपा ने किसान कानून वापस लेकर अपने जिताऊ समीकरण को जिंदा कर दिया है. इससे सपा-रालोद की इस इलाके को लेकर पूरी रणनीति बिखर सी गई है. हालांकि आरएलडी वाले अभी दोनों पार्टियों की दूरी की बात को नकार रहे हैं, पार्टी सूत्रों की ओर से कहा जा रहा है कि पीसी नहीं हो रही तो क्या हुआ, अखिलेश यादव और जयंत चौधरी लगातार संपर्क में हैं. महागठबंधन पर बातचीत हो रही है. केवल सीटों के बंटवारे को लेकर मतभेद हैं. अब इस बंटवारे की ही बात कर लें, पार्टी सूत्र बताते हैं कि रालोद इस गठबंधन में 35 सीटों की मांग कर रही है और सपा की कोशिश है कि 25 सीटों में बात बन जाए. अभी 22 सीटों पर रालोद और सपा के बीच सहमति बन गई थी.

रालोद सहारनपुर , बागपत और मथुरा के बाहर भी सीटें पाना चाहती है. बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, मेरठ , मुरादाबाद पर भी उसकी नजर है. अंदरखाने की बात यह है कि सपा उसे इतनी बड़ी संख्या में सीटें देने पर सहमत नहीं है. जयंत अपने पिता चौधरी अजीत सिंह के निधन की सहानुभूति और किसान आंदोलन की लहर को अपने पक्ष में भुनाना चाहते थे, पर मोदी के मास्टरस्ट्रोक की चोट से कहीं दोनों की पार्टनरशिप टूट न जाए

रिपोर्ट रीता कुमारी

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