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नेत्र दृष्टि संवर्द्धन क्रिया योग : नेत्रशक्ति संबंधी क्रियाएं जो नेत्र विकार को दूर कर सक्षम दृष्टि प्रदान करे जानिए आप

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नेत्र दृष्टि संवर्द्धन क्रिया योग : नेत्रशक्ति संबंधी क्रियाएं जो नेत्र विकार को दूर कर सक्षम दृष्टि प्रदान करे जानिए आप*

डॉ राव पी सिंह

प्रत्येक मानव सभी प्राकृतिक सुखों का पूर्ण आनद तभी पा सकता है जबकि वह स्वस्थ है। प्राकृतिक सौंदर्य और रसादन के लिए उसके नयन भी होना आवश्यक है। दृष्टि दोष उसे उन संसाधनों का भरपूर आनंद नही दे सकती जिसका की वो हकदार है।

मानव दृष्टि विकारों को दूर करने और दृष्टि शक्ति विकास के लिए नेत्र क्रियाए आवश्यक होती है जिनका नीचे वर्णन किया जा रहा है

ये तीन प्रकार की हैं |

1) नेत्रों को शांति प्रदान करने वाली क्रियाएँ
2) नेत्रों की शक्ति बढ़ाने वाली क्रियाएँ
3) नेत्रों की चंचलता कम करने वाली त्राटक क्रियाएँ।

नेत्र दृष्टि संवर्द्धन क्रिया योग के लाभ

नियमित नेत्र संबंधी क्रियाओं से आंखों में रक्त प्रसार नियमित होगा।

इससे नेत्रों की शक्ति में वृद्धि होगी।

नेत्रों की मलिनता दूर होगी।

तिरछी आना तथा प्रारंभिक स्थिति का मोतियाबिंद आदि ठीक होंगे।

आम तौर पर नेत्रदूष्टि का नंबर बढ़ता रहता है। इन क्रियाओं के अभ्यास से वह कम होगा |

मन की एकाग्रता बढ़ेगी।

घंटों टी.वी. देखते रहने वालों तथा कम्प्यूटर आदि का काम करने वालों की नेत्र संबंधी व्याधियों का निवारण होगा।

नेत्र दृष्टि संवर्द्धन क्रिया योग की विधियां

विशेष:
सभी क्रियाए सुखासन में बैठकर ही की जानी चाहिए
नेत्रों से संबंधित क्रियाएँ करते समय सिर न हिलाएँ। सिर्फ नेत्रों की पुतलियाँ घुमाएँ तथा इन क्रियाओं में मन का लीन होना आवश्यक है |
इन सभी क्रियाओं में सांस सामान्य रहेगी। इन क्रियाओं को करते समय ध्यान दें कि सूर्य रश्मि या बिजली की बत्ती की रोशनी सीधे नेत्रों पर न पड़े।
अपने हाथों की मुट्ठी बांध कर अंगूठों को खड़ा करके उन्हें गौर से देखते रहने की ये सभी क्रियाएँ हैं।

प्रथम क्रिया :नेत्रों को शांति प्रदान करने वाली क्रियाएँ

इन क्रियाओं में आँख की पुतलियाँ तेज़ी से घुमायी जाती हैं।

दोनों हाथ सामने की ओर दायें-बांयें पसारें, मुड़ी बाँध लें। दोनों अंगूठों को खड़ा करें। दोनों आँखों से बायें अंगूठे और दायें अंगूठे को जल्दी-जल्दी, बारी-बारी से गौर से देखें।

दायाँ हाथ दायीं ओर ऊपर उठा कर, बायाँ हाथ बायीं ओर नीचे झुकावें। ऊपर के अंगूठे तथा नीचे के अंगूठे को जल्दी-जल्दी गौर से बारी-बारी से देखें |

बायाँ हाथ बायीं ओर ऊपर उठा कर, दायाँ हाथ नीचे दायीं ओर झुकावें। दोनों अंगूठों को बारी-बारी से जल्दी-जल्दी गौर से देखें।

एक अंगूठे को ऊपर, एक अंगूठे को नीचे रखें। उन्हें जल्दी-जल्दी उपर नीचे देखें |

एक अंगूठा भूकुटि के सामने, नाक की नोक के पास रखें और एक अंगूठा आगे पसारें। एक के बाद एक करके दोनों को जल्दी-जल्दी गौर से देखें।

दायाँ हाथ सीधे बगल में पसारें। दायें अंगूठे को देखते हुए हाथ को गोलाकार में बड़े सर्किल में तेज़ी से घुमावें। ध्यान रहे कि कुहनी न मुड़े।

बायाँ हाथ भी बगल में पसार कर ऊ’ की भांति करें।

पलकों को तेज़ी से झपकाते रहें।

उपर्युक्त क्रियाएँ जब समाप्त हों, तब दोनों हथेलियाँ रगड़े। थोड़ी देर में गरमी निकलेगी | तब दोनों हथेलियाँ दोनों आॉखों पर रखें। ऊँगलियों से आंखो की कोमलता पूर्वक मालिश करें।

इन क्रियाओं से आंखों को बहुत आराम मिलेगा।

द्वितीय क्रिया नेत्रों की शक्ति बढ़ानेवाली क्रियाएँ

ये धीरे से की जाने वाली क्रियाएँ हैं। पलकें बंद नहीं करनी चाहिए। जब तक आँख थक न जाय तब तक हर क्रिया करते रहना चाहिए।

दायाँ हाथ सीधे दायीं ओर पसारें। अंगूठे को देखते हुए हाथ को धीरे-धीरे सामने लावें। इसके बाद फिर अंगूठे को देखते हुए हाथ को यथास्थान ले जावें |

बायाँ हाथ बायीं ओर पसार कर उसी प्रकार करें।

दायाँ हाथ ऊपर उठावें। अंगूठा देखते हुए धीरे-धीरे बायीं ओर नीचे ले आवें। फिर यथास्थान ले जावें।

बायाँ हाथ ऊपर उठाकर उसी प्रकार करें।

दोनों हाथ ऊपर उठावें। दोनों अंगूठों को मिला कर उन्हें देखते हुए धीरे-धीरे दोनों हाथ नीचे उतारें। फिर दोनों अंगूठों को देखते हुए दोनों हाथ ऊपर उठावें।

दायाँ हाथ दायीं ओर पसारते हुए अंगूठा देखते हुए धीरे-धीरे बड़े सर्किल में हाथ को गोलाकार में घुमाते रहें।

बायाँ हाथ बायीं ओर पसार कर उसी प्रकार करें।

पलकों को तेजी से झपकाते रहें।

दोनों हथेलियाँ रगड़ कर गरम होने के बाद ऑखों पर हथेलियाँ दोनों अांखों पर रखें। इसे नेत्रों को आराम मिलेगा।उँगलियों से आंखो की कोमलतापूर्वक मालिश करें।

उपर्युक्त क्रियाओं से आंखो की शक्ति बढ़ेंगी।

तृतीय क्रिया नेत्रों की चंचलता कम करनेवाली त्राटक क्रियाएँ

ये अंगूठे को लगातार गौर से देखते रहने वाली त्राटक क्रियाएँ हैं। अपनी अपनी शक्ति के अनुसार 15 सेकंड से 2 मिनट तक हर क्रियाएँ की जा सकती है। हर क्रिया के बाद आंखें मूंद कर उन्हें आराम अवश्य दें।

एक हाथ सामने पसार कर उस हाथ के अंगूठे को खड़ा कर उसे गौर से लगातार देखते रहें।

एक हाथ को (बीच में से) ऊपर उठावें। उस अंगूठे को ग़ौर से देखते रहें।

एक हाथ को (बीच में से) नीचे उतारें। उस अंगूठे को ग़ौर से देखते रहें।

दायाँ हाथ दायीं ओर ऊपर उठावें। अंगूठे को ग़ौर से देखते रहें।

दायाँ हाथ दायीं ओर पसारें। दायें अंगूठे को गौर से देखते रहें।

दायाँ हाथ दायीं ओर नीचे झुकावें। अंगूठे को ग़ौर से देखते रहें।

बायाँ हाथ बायी ओर ऊपर उठावें। बायें अंगूठे को ग़ौर से देखें।

बायाँ हाथ बायीं ओर पसारें। अंगूठे को ग़ौर से देखें।

बायाँ हाथ बायीं ओर नीचे उतारें। अंगूठे को गौर से देखें।

अंगूठे को भूकुटि के सामने, नाक के पास रखें। उसे ग़ौर से देखें।

उपर्युक्त सब क्रियाएँ करने के बाद मोम की बत्ती या दीप जलावें। उसे सामने मेज पर आंखों से दो फूट दूर रखें। उसे ग़ौर से देखें। इसे ज्योति त्राटक क्रिया कहते हैं।

त्राटक क्रियाओं से आखों को तथा मन को चंचलता कम होगी |

सूचना :
उपर्युक्त क्रियाओं से आँखें थक जायेंगी।अत: पलकों को थोड़ी देर तक जल्दी-जल्दी इापकाते रहें तो थकावट दूर होगी।

इसके बाद दोनों हथेलियों को रगड़ कर दोनों आंखों पर थोड़ी देर तक रखें। बाद उँगलियों से आंखो की हलकी मालिश भी करें। इसके बाद नेत्र शुद्धि संबंधी – दो प्यालों में शुद्ध जल भरें। दोनों आंखों पर उन्हें रखें। फिर ऑखें मूंदें और खोलें। इससे नेत्र शुद्ध हो जायेंगें। ये प्याले योग केन्द्रों में मिलते हैं।

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